संदेश
जंगली मन - कविता - सुनीता प्रशांत
इन हरे भरे जंगली पेड़ों जैसे मैं भी हरी भरी हो जाऊँ मनचाहा आकार ले लूँ कितनी भी बढ़ जाऊँ फैल जाऊँ दूर-दूर तक या आकाश को छू जाऊँ रोकना…
मन - कविता - इन्द्र प्रसाद
मन मधुर स्वप्न गाता है। वह राग मुझे भाता है॥ मन की गति सबसे न्यारी, है सब गतियों पर भारी। जब अंकुश हट जाता है, बन जाता अत्याचारी।…
द्वंद - कविता - पालिभा 'पालि'
कुछ घटनाएँ अक्सर छोड़ देती है, मन में कुछेक सवाल, ये सवाल ही छेड़ देती है मन में अक्सर द्वंद, ये द्वंद उथल-पुथल मचा देती है पैदा करके …
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है - कविता - अतुल पाठक 'धैर्य'
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है, मन जीता जिसने वह अनुपम छवि मनुहारी है। मुद्दतों बाद मन के आँगन में ख़ुशियों की प्यारी सी झलकारी है, जैसे …
मन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
मन चंचल है तुम ये जानो, मन की शक्ति को पहचानो। मन की गति का अंत नहीं है, ये तुम अपने मन से जानो॥ मन की भाषा समझ सको तो, मन से उसक…
मन की पीर - गीत - अंशू छौंकर
तुम तो दिल बहलाते आए, मन की पीर सुनो तो जानु। सेमल सुमन नहीं अभिलाषा, प्रेरण पुष्प बनो तो जानू। उर से उर की जान सकोगे, दर्द दिया पहचान…
मन - कविता - श्याम सुन्दर अग्रवाल
तेरा मेरा उसका मन, अजब पहेली सबका मन, मन का जाने मन न कोई, मन ही जाने मन का मन। चाहे ये हो जाए मन, चाहे वो हो जाए मन, भला कहीं पूरा हो…