संदेश
ऋतुराज बसंत - कविता - गणेश भारद्वाज
पहन बसंती चोला देखो, अब शील धरा सकुचाई है। कू-कू करती कोयल रानी, लो सबके मन को भाई है। हरयाली है वन-उपवन में, कण-कण में सौरभ बिखरा है।…
ऋतुराज - कविता - राजेश 'राज'
दहक रहीं डालें पलाश की, झूमीं शाखाएँ अमलतास की। मंजरियों से पल्लवित आम हैं, कोयल कितनी स्फूर्तिवान है। ओढ़े सरसों पीली चुनरी, फूली-फूल…
बसंत का आगमन - कविता - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
ऋतुराज आया है मनोहर धरती पे छाई है रौनक़ मन बसंती हो गया है माँ शारदे का रूप है मोहक ऋतु शरद की आई विदाई धरती माँ ले रही अँगड़ाई पतझड़ …
वसन्त पञ्चमी - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नव वसन्त तिथि पञ्चमी शुभा, पावन दिन मधुमास मधुर है। पूजन अर्चन विनत ज्ञानदा, विद्याधन अभिलास मधुर है। सरस्वती माॅं भारत मुदिता, हंसवाह…
बसंत का त्यौहार - कविता - बिंदेश कुमार झा
शीत के प्रताप प्रभाव हो रहा व्याकुल संसार, प्रसन्नता का आयाम लेकर आया बसंत का त्यौहार। सो रही कलियाँ उठ रही है अँगड़ाई लेते, वायु सँजोए…
लौट फिर बसन्त आया - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
पीत वर्णी पुष्पित ओढ़ चुनरिया, निज आँगन वसुंधरा ने सजाया। फैला चहुँओर उत्साही नज़रिया, लगता लौट फिर बसन्त आया। बगिया में ठूॅंठ सा खड़ा…
वसन्त का कैलेण्डर - कविता - डॉ॰ नेत्रपाल मलिक
दो तारीख़ों के बीच बीतते हैं जो युग उनका फ़ासला भी दीवार पर टँगा कैलेण्डर दिनों में बताता है फिसल जाती हैं जो तारीख़ें हाथों से चिपकी रह …