संदेश
वह आज भी बच्चा है साहब - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
वह आज भी बच्चा है, नन्हा सा मासूम सा, वही जिसे कहते है लोग, कोरा सा काग़ज़ सा। मिला मुझे भगवान को, साँचे में ढालते हुए, नन्हें हा…
बचपन और गाँव - कविता - विजय कृष्ण
बचपन में गाँव हमेशा दस किलोमीटर दूर लगता था, न कम न ज़्यादा। एक तो बुद्धि दस वर्ष से ज़्यादा न थी और दूसरे दस का नोट बहुत बड़ा लगता था। …
खोया बचपन - कविता - सीमा वर्णिका
आ लौट चलें बचपन की ओर, जहाँ नहीं था ख़ुशियों का छोर। दिन-रात खेलकूद की ख़ुमारी, पढ़ाई कम और मस्ती पर जोर। वह ग्रीष्मावकाश होते थे वरदान,…
वो प्यारा बचपन - कविता - निकिता मिश्रा
वो प्यारा बचपन पीछे जा रहा है, यादो में तेरी खोया जा रहा है। वो ज़िद कर के कुछ भी माँग लेना, वो रूठ कर किसी से कुछ भी कह देना, ऐसा बचपन…
बचपन - कविता - डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी
कभी रूठ के तेरा जाना मुस्कुराना आना फिर पलट के हँसना खिलखिलाना और मचलना रोना आँसू बहाना कभी मीठी न्यारी प्यारी बातों से मन को गुदगुदान…
मेरी नन्हीं दुनिया - कविता - सुनील माहेश्वरी
जहाँ जन्म हुआ उन यादों को कैसे भूल जाएँ, जहाँ बीता बचपन मेरा उस ख़्वाबगाह को क्यों भूल जाएँ। मिट्टी के घरौंदे बचपन की मस्ती थी सबस…
बचपन - कविता - उर्मि
बचपन मेरा बचपन! कितना सुंदर और प्यारा बचपन। कब आया, कब गया सपनों सा मानस पटल पर रह गया। लौटकर आओ ना मेरा प्यारा सा बचपन। वह माँ और…
मैं कैसे भूल जाऊँ? - कविता - अभिषेक द्विवेदी 'नीरज'
वो मेरा प्यारा सा गाँव, वो पेड़ों की ठन्डी छाँव, वो कलियाँ फूलों की, मस्तियाँ सावन की झूले की, मैं कैसे भूल जाऊँ? वो प्यारी सी डाँट नान…
बचपन की यादें - कविता - सरिता श्रीवास्तव 'श्री'
यादें बचपन बड़ी सुहानी, जैसे बहता पानी धार। उछल कूद कर मौज मनाएँ, बच्चों का है ये संसार। बिचरण करते पंछी जैसे, बचपन एक स्वछन्द उड़ान। …
यादें बचपन की - कविता - हरदीप बौद्ध
जब हम बच्चे थे, वो पल बहुत अच्छे थे। रो-रोकर स्कूल को जाते, हँसते हुए वापस आते। होता था अवकाश जिस दिन, खेल-कूद में सारा दिन बिताते। खो…
काग़ज़ की कश्ती - कविता - वर्षा अग्रवाल
काग़ज़ की कश्ती बना, बचपन बीता सारा, ना होश खाने पीने का, था बचपन आवारा। कितनी यादें सुनहरी, था प्यार का एहसास, सिवाय पक्की दोस्ती के न…
वो बारिश का दिन - त्रिभंगी छंद - संजय राजभर "समित"
वो बारिश का दिन, रहे लवलीन, काग़ज़ी नाव, अच्छे थे। हम बच्चों का दल, देखते कमल, लड़ते थे पर, सच्चे थे। लड़कपन थी ख़ूब, कीचड़ में सुख, समय…
बाल विवाह: एक अभिशाप - कविता - शैलजा शर्मा
नारी अपने आईने को, ना बनने देना ख़ुद जैसा। जो होता रहा साथ तेरे, ना होने देना अब वैसा।। ना बनने दो उसको कठपुतली, तुम काजल बिंदी तिलक लग…
गर्मी की छुट्टियाँ - संस्मरण - मंजिरी "निधि"
आज विद्यालय में वार्षिक परिणाम लेने जाना था। हरे गुलाबी रंग के गत्ते पर परिणाम मिलते थे। वह परिणाम क्या है क्या नहीं कोइ मतलब नहीं हुआ…
बचपन - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
झूठ और चोरी के डर से परे, साहस और स्पष्टवादिता के साथ, दुश्मनी की कड़वाहट से दूर, चंचलता और आत्मीयता के साथ। बदनामी की संभावना से अपरि…
निश्छल बचपन - कविता - सुनील माहेश्वरी
थोड़े हठीले थोड़े चंचल, थोड़े होते हैं ये नादान। थोड़ी शरारत थोड़ी मस्ती, दिन भर का है ये काम। अपनी ही दुनिया में ख़ुश रहते, खिलौनों से है ब…
कहने को लोग बड़े हो गए - कविता - गुड़िया सिंह
जैसे ही बचपन बीती, कहने को लोग बड़े हो गए। उँगली थाम कर गिरते सम्भलते थे, जब से हैं अपने पैरों पर खड़े हो गए, उम्र थोड़ी क्या बीती, संग ब…
बचपन की याद - कविता - समय सिंह जौल
ऐसी थी बचपन की याद। चूल्हे की रोटी लगती थी स्वाद।। गऱीबी का भी नहीं, होता था अहसास। माँ की ममता, पिता का प्यार था पास।। दादाजी की परिय…
है अबोध यह बालपन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
है अबोध यह बालपन, निश्छल निर्मल चित्त। चपल प्रकृति कोमल सरल, मधुर स्नेह आवृत्त।।१।। खेलकूद कौतुक सहज, भावुक मन उद्गार। मेधावी नित अनुक…
लौटे बचपन दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
दोहन होती दीनता, दोहन नित अरमान। झेले जग अवहेलना, दास भाव अपमान।।१।। लोक लाज भयभीत मन, पाले भय मनरोग। दिवस रात्रि मेहनतकशी, भूख प्यास…
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