संदेश
सहर को सहर नहीं कहता - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
परहेज़ करता है वह खिलखिलाने से, कि अपने मन की सरे-आम बताने से। यूँ चुप रहता है और आँखों से ख़ूब बोलता है, जाने क्या आता है ज़ुबाँ पे पैमा…
साक्ष्य - कविता - बृज उमराव
शिलालेख प्रस्तर पट छतरी, दीर्घायु पादप चाँद सितारें। देते हैं प्रत्यक्ष गवाही, कभी किसी से वह न हारें॥ परिवर्तन है प्रकृति प्रदत्त, इस…
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सकल सृष्टि में संकट छाया, दूषित हुआ समाज। प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥ ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई, रखा सभी का ध्यान। ज…
मैं मौन हो गया - कविता - इमरान खान
मैंने उस लड़की से कहा– 'मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ!' उस लड़की ने मुझसे पूछा– 'तुम्हारे शब्दों में मेरे होंटों की …
हे ईश्वर! - कविता - नंदनी खरे 'प्रियतमा'
हे ईश्वर! यदि क़िस्मत जैसा कुछ वास्तव में होता है, तो नाइंसाफ़ी बहुत की है तुमने। तुमने क़िस्मत के मामले में, किया है समता के अधिकारों का…
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या? जो बोले, पर मौन रहे। जो जल जैसा हो थिर-थिर, पर भीतर ही भीतर बहे। जिसमें रूप न कोई दिखे, ना कोई स्पष्ट रेखा। ज…
शर्मिंदगी - कविता - राजेश राजभर
मौन हो! तुम कौन हो? क्यों छिपते हो, शर्मिंदगी की आड़ में। एक नारी ही तो "नग्न" हुई, आज भरे बाज़ार में! मौन हो! तुम कौन हो? …
इश्क़ का गाँव - कविता - निर्मल श्रीवास्तव
इश्क़ का गाँव बना के हमको भी वहीं बसा दो कितनो को तुमने बनाया मेरे लिए इक ना बनाया मेरे ख़ातिर कोई बता दो थोड़े बाग़ों को लगा के थोड़ा फूलो…
पहली बार बारिश - कविता - बिंदेश कुमार झा
पहली बार बारिश कहाँ हुई थी? मिट्टी की गोद में, गर्भ के विरोध में, वैज्ञानिकों के शोध में— नहीं मालूम। आख़िरी कब होगी? चंद्रमा के तल पर…
बारिशों के आँसू - कविता - मदन लाल राज
ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों की चिताओं पर अपनी रोटी सेक लेते हैं। पर वो कहाँ मिलेंगे जो बारिशों में भी आँसू देख लेते हैं। मदन लाल राज - न…
कविता और कवयित्री - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैंने पूछा– "तू इतनी उदास क्यूॅं है?" तो वह अपनी आँखें झुका ली। आप बीती कैसे बयाँ करती वो आँखों से अश्कों को ही छुपा ली। मैं…
मैं चला मैं ढूँढ़ने - कविता - सुष्मिता पॉल
मैं चला मैं ढूँढ़ने, कभी अपनों में, कभी ग़ैरों में, कभी मंदिर में, कभी पहाड़ों में, असीम शांति की खोज में, भटकता रहा राहगीर मैं, दर-दर …
घना धुँध - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जीवन गहराता जा रहा, एक घने धुँध से। मन व्याकुल है; जैसे पिंजरे में बंद कोई पक्षी हो। हृदय आहत है; अपने ही द्वारा किए गए कार्यों से। शर…
समझो जीवन मुस्कान खिले - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
पूर्ण सकल मन आश विभव सुख, जब ख़ुशियों का अंबार खिले। हर उदास मुख महके राहत, समझो जीवन मुस्कान खिले। काश हृदय अभिलाषा झंकृत, पुरुषार्थ व…
सपनों की राह में संघर्ष - कविता - रूशदा नाज़
क्यूँ, क्या, कैसे कहाँ तक? इन सवालों में उलझा विद्यार्थी कल्पनाओं में ढूँढ़ता है यर्थाथ अपने सफ़र में भटकता हुआ, थकता हुआ, हारता हुआ किन…
जा रही हूँ छोड़ उपवन - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
जा रही हूँ छोड़ उपवन, फिर कभी न आऊँगी। लौटना असंभव मेरा अब, हूँ तिरस्कृत बार-बार। अब न मुझको बाँध सकेंगी, प्रिय! तुम्हारे अश्रुओं कि ज…
सोने के पिंजरे इन्हें रास न आते हैं - कविता - रजनी साहू 'सुधा'
तन्हाई के मौसम में पंछी राग सुनाते हैं, सन्नाटों की पीड़ा को स्वर में गुनगुनाते हैं। प्रीत निभाने के ये सब राज़ छुपाते हैं, बुलंदी के …
फिर फिर जीवन - कविता - रोहित सैनी
अगर कभी तुम्हें लगे अकेले ही पर्याप्त हो तुम अपने लिए जब लगे अकेले जीवन जिया जा सकता है, मुश्किल नहीं! तब अपनी जान का पूरा दम लगाकर फि…
संघर्ष का सूर्योदय - कविता - सुशील शर्मा | मज़दूर दिवस पर कविता
धूप की पहली किरण, उजागर करती अनगिनत चेहरे, जो झुकते हैं धरती पर, उठाते हैं भार, बनाते हैं राहें। हाथों में खुरदरापन, धमनियों में बहता …
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
स्वयं के भीतर शिव को खोजूँ, ख़ुद वैरागी हो जाऊँ। मोह-मृग की माया त्यागूँ, शून्य में लय हो जाऊँ॥ मन-वेदी पर दीप प्रज्वलित, शुद्ध प्राण क…
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