संदेश
दर्पण - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
देख ले जहान आज, कल कैसा होएगा। संचारित दुनिया में, अकेलापन रोएगा।। बच्चा कहीं और पले, माता कहीं और हो। कौन देगा ज्ञान ध्यान, पैसों की …
आईना - कहानी - अंकुर सिंह
"बेटा सुनील, मैंने पूरे जीवन की कमाई नेहा की पढ़ाई में लगा दी, मेरे पास दहेज में देने के लिए कुछ भी नहीं है।" शिवनारायण जी न…
आईना - कविता - बृज उमराव
दर्पण कभी झूठ न बोले, देता सबका साथ। मुख की आभा इंगित करता, दिन हो या फिर रात।। सुघर सलोना देख के मुखड़ा, दर्पण ख़ुद शर्माता है। करे…
आईना - कविता - आराधना प्रियदर्शनी
जो हँसोगे तुम तो हँसेगा वो, जो रो दोगे तो रोएगा, जो उदासी आई चेहरे पर तुम्हारे, तो वह भी रौनक अपनी खोएगा। आपकी प्रतीक्षा में अडिग रहता…
दर्पण झूठ नहीं कहता है - गीत - रमाकांत सोनी
अंतर्मन झाँको थोड़ा सा, ईश्वर घट घट में रहता है, आस्था विश्वास प्रेम का, हृदय में सागर बहता है। राज़ छुपाने वालों सुन लो, करतार कु…
आईना ज़िंदगी का - कविता - सुनील माहेश्वरी
हौसला है तो यारो, कुछ काम कर डालो, अपना वक़्त ज़िंदगी में, अपने नाम कर डालो। छोड़ दो ये दुनिया किसको क्या कहेगी, यदि ये भी हम सोचेंगे, …
आईना - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
अरे! निर्मल ही तो हूँ मैं, भला अब मुझे कोई क्या निर्मल करेगा। निर्मल को निर्मला कर देने भर से भला क्या कोई तरेगा? अरे! अबल ही तो हूँ…