संदेश
होली - कविता - गणेश भारद्वाज
सद्भावों की माला होली, ख़ुशियों की है खाला होली। रंग बसे हैं रग-रग इसकी, रंगों की है बाला होली॥ मन के शिकवे दूर करे यह, मस्ती में फिर च…
अनुसरण कृष्ण का - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
शिथिल पाँव भोग के, विस्मरण भाव शोक के। कर्म से गति का अवसर, सम्यक ध्यान अहरहर। अनुसरण कृष्ण का। होली, अग्नि दहन ईर्ष्या का, उचित प्रयो…
चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर - गीत - सुशील शर्मा
चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर होली आई रे भैया मन मिश्री तन रंग लगाए नाचें साथी छम-छम-छम यौवन का उल्लास समेटे बजे मृदंगा डम-डम-डम प्रेम, मौ…
होली आई रे - गीत - अजय कुमार 'अजेय'
होली आई रे होली आई रे। मस्ती छाई रे मस्ती छाई रे। रंगों से भरी पिचकारी, छोरा-छोरी चोरी मारी। गुब्बारे में भर-भर रंग सारे, हुरियारे साध…
श्रद्धा भक्ति प्रेममय होली है - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
ब्रज होली है रंगों का त्यौहार राधा संग खेलें होली रे। गोरी राधा हृदय गोपाल मन माधव प्रिय हमजोली रे। मोहे रंग दे गुलाल गाल फागुनी होल…
सुरक्षित होली प्रदूषणमुक्त होली - कविता - डॉ॰ विजय पण्डित
आओ सब मिल हँसी ख़ुशी सुरक्षित होली मनाएँ पर ध्यान रहे हरा पेड़ होलिका की भेंट चढ़ने ना पाएँ, होलिका दहन की अग्नि से दूर हो सब संताप नफरत…
तो समझो की ये होली है - गीत - उमेश यादव
नयनों में ख़ुमारी छाए, साँसों में भी उष्णता आए। मन मिलने को अपनों से, होकर अधीर अकुलाए॥ लहरों सा हिलोरे ले मन, तो समझो की ये होली है॥ म…
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और, सोचा थोड़ा-सा इंतिज़ार, बस, और। भूल जाने में कौन म…
उड़ गई गौरैया - कविता - सुशील शर्मा
आज गौरैया दिवस पर मैंने फिर से दी गौरैया को आवाज़ नहीं बोली घर के आँगन मुंडेरों पर चुपके से फुदक कर निकल गई पंख फुलाए जैसे ग़ुस्स…
नायाब भिक्षुक - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
विद्यालय से पढ़ाकर घर लौटते समय अपने साथी आचार्य दीनू महोदय की सहमति चाहते हुए आचार्य पंकज ठहाके लगाते हैं और कहते हैं कि बच्चों को पढ…
बचपन - कविता - प्रवीन 'पथिक'
है याद आती, वह बातें पुरानी, वही प्यारा क़िस्सा, वह बीती कहानी। याद आता वह तेरा मुस्काता चेहरा, थी होती लड़ाई, पर था प्रेम गहरा। जब भी …
नहीं चाहता आसाँ हो जीवन - कविता - मयंक द्विवेदी
चाहे सौभाग्य स्वयं हो द्वार खडे, चाहे कर्ता भी हो भूल पड़े, नहीं चाहता आसाँ हो जीवन, चाहे मग में हो शूल गढ़े। जो पत्थर होऊँ तो नींव मिल…
बाँध ना पाया - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
व्यर्थ हुए सावन ने कहा― क्या कोई सम्भाल ना पाया, बहते-बहते पानी को, मुट्ठी में पकड़ ना पाया। यहाँ पुल तिनके से टूट गए, बाँध भी नदी, बा…
ख़ुद की तलाश - कविता - सतीश पंत
मेरे कमरे की खिड़की से आती रोशनी की किरण प्रायः पूछती है मुझसे कि क्या कर रहा हूँ मैं पहरों बैठकर चुपचाप एकांत में कभी निहारते घर की छ…
युद्ध का औचित्य - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
जब भ्रम ही सच्चा लगता हो, तब सत के पथ पर कौन चले। जब द्वार खड़े हों वायुयान, घोड़ों के रथ पर कौन चले॥ तिलमिला उठे जब बर्बरता, कुलबुला …
वज़नी बात - कविता - संजय राजभर 'समित'
जोर-जोर से चिल्ला कर अपनी बात मत कहो! क्योंकि छिछले लोग ध्यान देगें गहरे विचारक नहीं, गहन विचार केवल चिंतन-मनन से आती है गहरे विचारक …
संस्कार - कहानी - रमेश चन्द्र यादव
फ़ोन की घंटी एक बार बजकर चुप हो गई थी, तभी दोबारा से फिर घंटी बजी। फ़ोन उठाते ही उधर से अनजान आवाज़ आई "पटवारी जी बोल रहे हैं?"…
यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए - कविता - उमेन्द्र निराला
देख बुराई अपने अंदर इसे मरना ही चाहिए, जीवन में फैला अँधेरा मिटना ही चाहिए, यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए। लगी विचारों मे वर्षो की दीमक…
पथ सहज नहीं रणधीर - कविता - श्रवण सिंह अहिरवार
अपनी जीत पर अधिक उल्लास ना कर, मंज़िल अभी आगे है यह नज़र-अंदाज़ न कर, कर्तव्य पथ में बिखरे हैं शूल अनंत यह ध्यान धर, पथ सहज नहीं रणधीर ये…
बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कितने सुंदर, बेमिसाल थे, छुटपन के दिन बचपन के दिन, रह ना पाते सखियों के बिन। रह ना पाते सखियों के बिन। खेलकूद थे मस्ती थी, काग़ज़ वाली क…
जो सहज सुलभ हो - कविता - मयंक द्विवेदी
जो सहज सुलभ हो अमृत तो तुच्छ अमृत का क्यूँ पान करूँ इससे अच्छा तो विष पीकर विष का ही गुणगान करूँ कूल सिंधु के बैठे-बैठे क्यों मौजों का…
सम्मान - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदाचार शिक्षण मिले, शिक्षा नैतिक ज्ञान। मानवीय मूल्यक सदा, मिले कीर्ति सम्मान॥ सबकी चाहत लोक में, मिले समादर मान। कर्मवीर सच सारथी, से…